यार कुछ भी कहो, हिन्दी में लिखने का मजा अलग ही है। अपनी मात्रभाषा होने की वजह से विचारों की तो कभी कमी ही नहीं होती। बल्कि मुझे तो लगता है की कभी हो ही नहीं सकती। मैंने ब्लॉग लिखना लगभग तीन साल पहले शुरू किया था। शुरू में तो बहुत जोश-खरोश से खूब लिखा। क्या-क्या नहीं लिखा, टाइमपास पोस्ट्स करीं, टेक्नीकल भी करीं, फ़िर हिन्दी में भी करीं, और तो और अपने काम से सम्भंदित ब्लॉग भी बना डाला। लेकिन फ़िर कमबख्त समय की मार, पेट की पुकार और जिंदगी के कोल्हू ने मेरे विचारों को बैल की तरह जोत डाला। अब हालत यह है की विचार बाद में आते हैं और सवाल पहले! फ़िर सवालों के जवाब ढूँढने के चक्कर में विचारों की तो कब्र बन जाती है।
अब काफी समय के बाद मैंने देखा की हिन्दी में ब्लॉग करना बहुत आसन हो गया है और साथ ही ढेर सारे लोगों को लिखने का चस्का भी सवार हो गया है। गली का बच्चा-बच्चा अब तीन चार ब्लॉग लिखता है। पता नहीं इतने सारे चिठ्ठों को पढता कौन है? मेरे एक ब्लॉग ब्लॉग पर तो कोई अब टिपण्णी ही नहीं करता। तो मैंने भी सोचा, भाड़ में जाए यह मरदूद कमेंट्स और पढ़नेवालों के आंकडे! हम वो लिख्नेगे जो हम अपनी रोज की जिंदगी में सीख रहे हैं....चाहे अपने रोज के काम से, या फ़िर इधर उधर से जुगादी किताबिएँ पढ़ के, या फ़िर अपने अनुभव से।
अब रोज इतना कुछ देखते हैं, सुनते हैं (बीवी से) और सीखते हैं, तो कमबख्त क्या-क्या याद रखें? अब ब्लॉग पर कुछ लिख देंगे तो याद भी रहेगा........है की नहीं?